मायावती की आवाज हमारे समाज के सबसे “शोषित तबके की आवाज है और इस आवाज को संसद के बाहर प्रशासन द्वारा और संसद के भीतर भगवा ब्रिगेड की भीड़ द्वारा दबा दिये जाना एक मायने में वंचितों समाज के सवालों की भीड़ हत्या (मॉब लिंचिग) के समान है : महेश राठी

सहारनपुर काण्ड़ और उ.प्र. में दलितों पर भगवा ब्रिगेड के बढ़ते हमलों पर मायावती की आवाज को हुडदंगी तरीके से दबा दिये जाना और उसके विरोध में बसपा प्रमुख सुश्री मायावती का इस्तीफा देना भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का काला दिन है। यह सवाल सिर्फ एक नेता को बोलने नही दिये जाने से कहीं बड़ा और आने वाले दिनों में भगवा ब्रिगेड की कार्यशैली और लोकतंत्र को निरंंकुश करने की तैयारियों की आहट है। मायावती की आवाज हमारे समाज के सबसे “शोषित तबके की आवाज है और इस आवाज को संसद के बाहर प्रशासन द्वारा और संसद के भीतर भगवा ब्रिगेड की भीड़ द्वारा दबा दिये जाना एक मायने में वंचितों समाज के सवालों की भीड़ हत्या (मॉब लिंचिग) के समान है। मायावती की आवाज दबाने वाली भगवा ब्रिगेड का व्यवहार उसी तरह था जैसा आजकल संसद के बाहर दलितों को शिकार बनाने वाली भीड़ का होता है। दोनों भीड़ में कोई अंतर नही है, अंतर केवल जगह का है। यदि यह जगह अथवा घटनास्थल बदल जाये और यह भीड़ संसद के बाहर हो तो निष्चित है कि यह भीड़ हत्यारी भीड़ होगी।
दोनों के व्यवहार की समानता उनके संचालक विचार अथवा उनकी संचालक “शक्ति का पता बता रही है। यह उस विचार की तरफ इशारा कर रही है जो भीड़ को अराजकों की भीड़ बनाती है, यह भीड़ उस भीड़ की मानसिकता को परिभाषित कर रही है जो भीड़ को हत्यारों की भीड़ बनाती है। मायावती को बोलने नही देना केवल एक आवाज को दबा देना नही विरोध की दलित आवाज की भीड़ हत्या है, यह असहमति के स्वरों की भीड़ हत्या है, यह पूरी दुनिया के सामने देश की सबसे बड़ी पंचायत में न्याय की उम्मीद की भीड़ हत्या है, यह संसद के भीतर जनवादी अधिकारों की भीड़ हत्या है, यह संसद में भारतीय लोकतंत्र की हत्या है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)