
रांची, झारखंड
जनजाति विधिक सहायता केन्द्र का प्रतिनिधिमंडल शंकर टोप्पो के नेतृत्व में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से गुरुवार को राज भवन आकर मिला। उक्त अवसर पर राज्यपाल से शिष्टमंडल ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केरल राज्य एवं अन्य बनाम चन्द्रमोहनन के वाद दाण्डिक अपील संख्या 240A वर्ष 1997 में दिनांक 28 जनवरी 2004 को दिये गये निर्णय का उल्लेख किया कि ‘‘किसी व्यक्ति को संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 के परिक्षेत्र के भीतर लाये जाने के पूर्व उसे जनजाति से संबंधित होना चाहिये। सरकार के आदेश का लाभ अभिप्राय करने के प्रयोजन के लिए एक व्यक्ति को जनजाति का सदस्य होने की शर्त पूर्ण करनी होगी और निरंतर जनजाति का सदस्य बने रहने होगा। यदि एक भिन्न धर्म में, धर्मान्तरण के कारण काफी समय पूर्व वह/उसके पूर्वज रूढ़ि, अनुष्ठान और अन्य परंपराओं का पालन नहीं कर रहे हैं, जिन्हें उस जनजाति के सदस्यों द्वारा अनुसरण किये जाने की अपेक्षा की जाती है और उत्तराधिकार, विरासत, विवाह इत्यादि की रूढ़िगत विधियों का भी अनुसरण नहीं कर रहे हैं तो उसे जनजाति का सदस्य स्वीकार नहीं किया जाता है।”
राज्यपाल को शिष्टमंडल ने यह भी अवगत कराया कि वर्तमान में अंचल कार्यालय द्वारा किसी व्यक्ति को उसके जातिगत रूढ़ियों एवं प्रथाओं को उनके द्वारा पालन किया जा रहा है कि नहीं, इस तथ्य के जाँच किये बिना ही सिर्फ खतियान के आधार पर ही उस व्यक्ति को जाति प्रमाण पत्र निर्गत किया जा रहा है। अतः शिष्टमंडल ने राज्यपाल महोदया से जनजाति व्यक्ति का जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने के पूर्व उनके द्वारा जातिगत रूढ़ियों एवं परंपराओं का पालन किया जा रहा है कि नहीं, इसे दृष्टि में रखते हुए, जाँचोपरांत अंचल कार्यालय द्वारा अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र निर्गत करने की व्यवस्था करने हेतु पहल करने का आग्रह किया।
उक्त शिष्टमंडल में शंकर टोप्पो के अतिरिक्त संजय लकड़ा, डा. प्रेम प्रकाश, आदर्श कुमार शर्मा आदि सम्मिलित हुए।
पोस्टल कोड 834001